मेडिकल कॉलेज को औने-पौने हालत में छोड़कर क्यों 9-2-11 हो गए प्रिंसिपल
- तीसरी आंख : कांख रहा मंडलीय
- ◆पौने दो साल में औने- पौने हालत में छोड़कर 9-2-11 हुए प्रिंसिपल
- ◆मेडिकल कॉलेज के नाम पर लग रहा बट्टा
- ◆यहां कतिपय डॉक्टर प्रायः मदहोश दिखते हैं
- ◆आम आदमी का कौन कहे, मण्डल के प्रशासनिक अधिकारी की पत्नी की जिंदगी बचाने में फेल हुआ अस्पताल
- ◆लगता है अस्पताल में स्वार्थ का यमदूत करता है कदमताल
- ◆कमिश्नर रहे योगेश्वर राम के जमाने में कांपते थे इलाज के नाम पर जनता को कंपाने वाले लोग
मिर्जापुर। हुआ वही जिसका डर था। अव्यवस्थाओं से गलबहियां करने वालों के आगे नव संचालित मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल घुटने टेक कर नौ-दो-ग्यारह हो गए।
पौने दो साल पहले 19 सितम्बर ’22 को प्रिंसिपल पद का चार्ज लेकर मेडिकल कॉलेज को नम्बर-एक बनाने का उनका दावा एक जुलाई ’24 को औंधे मुंह तब धराशाई हो गया जब उनके इस्तीफ़े की खबर फैलने लगी।
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खुद की सेहत की खराबी का अनुरोध का उनका लेटर जब हवाओं में तैरने लगा तो चाहिए यह भी था कि वे मेडिकल की खराब सेहत की भी जिम्मेदारी लेते और यह जताते कि पूर्व कमिश्नर योगेश्वर राम मिश्र के कमरे में जो उन्होंने वायदा किया था, उसे कार्यभार ग्रहण करने की 19 तारीख की तरह 19 करके वे इस्तीफ़ा दे रहे हैं।
◆योगेश्वर राम मिश्र हर मामले के साथ अस्पताल के मामले में हर घड़ी चौकन्ने रहते थे : मेडिकल कॉलेज के अधीन मंडलीय अस्प्ताल में खर-मण्डल दूर करने में योगेश्वर राम मिश्र निराले प्रशासनिक अधिकारी थे।
स्वास्थ्य विभाग के यूपी के इतिहास में पहली बार उन्होंने कोरोना काल में CMO कार्यालय में छापा ही नहीं मारा बल्कि चार्ज न देने वालों की अलमारी तोड़वाई और कार्रवाई की।
नतीजा रहा कि स्वास्थ्य विभाग में ओवरहॉलिंग हो गई। उनके इस एक्शन-मोड के बीच प्रिंसिपल कुछ दिनों तक ब्लैक कैट कमांडो स्टाइल में गार्ड आदि लेकर लड़े-भिड़े लेकिन उनके जाने के बाद वे बैकफुट की ओर जाते ज्यादा दिखे।
इसके पीछे अस्पताल के कतिपय डॉक्टरों की मेडिकल सेवा कम गैरमेडिकल रुचि के लोगों के साथ गठबंधन की मजबूत स्थिति बताई जाती है।
इस गठबंधन के पास इतने तगड़े मायावी-जाल है जिसका प्रयोग कर अनेक खुराफाती तत्वों को मुट्ठी में कैद किए रहते हैं।
लिहाजा कोई यदि स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार के लिए आवाज़ उठाता है तो ढाई घर चाल चलने वाले डॉक्टरों, मेडिकल कर्मियों, दवा के कारोबारियों, कुछेक निजी अस्पतालों के संचालक आपात बैठक कर मार्शल लॉ लगाते हैं फिर गली-चौराहे की नेतागिरी करने वाले छुटभैय्ये छोटी हरकतों पर उतर आते हैं।
◆निजी अस्पतालों का बुकिंग केंद्र बना दिया था ऐसे लोगों ने : सरकारी अस्पताल निजी अस्पतालों, ड़ायग्नोसिस सेंटरों, पैथालॉजी दुकानों का बुकिंग केंद्र बन गया था। महंगी से महंगी मशीनों के बावजूद साधारण ब्लड टेस्ट के लिए सीधे-साधे मरीजों को प्राइवेट भेजने के लिए बाध्य किया जा रहा था।
दो वर्ष पूर्व मिर्जापुर PWD के एक सीनियर क्लर्क की हालत खराब हुई और परिजन रात में लेकर जब अस्पताल पहुंचे तो ‘नो-ऑक्सीजन’ कहकर उन्हें एक प्राइवेट अस्पताल भेज दिया गया जहां 3 दिनों के उपचार में लगभग ढाई लाख रुपए खर्च हुए।
मरीजों को मारने पीटने की तो कई डॉक्टरों की हाथों में जैसे खुजली होती रहती थी।
इसी बीच 14 सितंबर ’22 को नगर के भटवा पोखरी के एक गरीब की मृत्यु के बाद मारपीट की नौबत तब आई जब उसकी रिपोर्टिंग पत्रकार करने लगे तो FIR की धमकी के साथ फर्जी ज्ञापन और विज्ञप्तियां जारी होने लगी। इसे योगेश्वर राम मिश्र ने अत्यंत गंभीरता से देखा। कई बार मंत्रीगण भी रुष्ट हुए लेकिन डाक्टरी कम दबंगई करने वाले फिर सक्रिय हो गए और अपनी करनी को अंजाम देने लगे।
◆इस बार पोस्टिंग को लेकर मचा है हो-हल्ला : इधर कुछ दिनों से अस्पताल के ऊंचे पदों पर परिवर्तन तब करना लाजिमी हो गया जब मण्डल में तैनात अपर आयुक्त की धर्मपत्नी की जिंदगी बचा पाने में यहाँ के चिकित्सकों पर फिर काला धब्बा लग गया।
चारों ओर मचे शोर में यही सुनाई पड़ रहा है कि पत्नी की बीमारी की खबर खुद अपर आयुक्त ने लखनऊ से दी लेकिन उनकी बीमार पत्नी पहले पहुंच गई तब उसके बाद डॉक्टर आए। मरीज को अस्पताल के अंदर ले जाने के लिए स्ट्रेचर तक नहीं दिया गया।
चूंकि गंभीर मरीज को त्वरित सेवा की आदत ही ऐसे डॉक्टरों की छूट गई है लिहाजा समान्य मरीज वाला सिस्टम अपनाया गया। अंत में वही हुआ जिसके लिए अस्पताल पर उंगली प्रायः उठती रहती है।
◆सड़क पर तय हो रहा कि कौन किस पद पर काम करेगा?: गंभीर घटना के बाद टेढ़ी हुई प्रशासन की भृकुटि के बाद बदनामी का दंश झेल रहे लोगों की तरफ़दारी सड़क पर की जा रही है कि ‘कौन अच्छा है कौन बुरा?’ ऐसे लोग लाज शरम घोल कर पी गए है अपने क़ुछ बख्शीश पर खतरा मंडराते देखकर। इस मामले की जांच गहराई से हो और जनस्वास्थ्य के खिलाफ अभियान में लगे ए-टू-जेड को कानून के दायरे में लेना ही चाहिए।
सलिल पांडेय, मिर्जापुर