यह भी जानिए शिवलिंग पर क्यों चढ़ाया जाता है “धतूरा”
- “धतूरा” चढ़ाने की के पीछे की पौराणिक कथा है.
भगवान शिव को धतूरा भी चढ़ाया जाता है क्या आपको पता है की इस परंपरा की शुरुआत कैसे हुई ? |
धतूरा चढ़ाने पीछे की पौराणिक महाकथा है शिव महापुराण के अनुसार शिवजी ने समुद्र मंथन से निकले हालाहल विष को पीकर सृष्टि को तबाह होने से बचाया था.
विष पीने के बाद भगवान शिव का गला नीला पड़ गया था, क्युकि इन्होंने विष को अपने गले से नीचे नहीं उतरने दिया था. तभी से शंकर भगवान को नीलकंठ कहा जाने लगा
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विष पीने के बाद वह व्याकुल होने लगे. वह विष भगवान शिव के मस्तिष्क पर चढ़ गया और भोलेनाथ बेहोश हो गए. देवताओं के सामने बड़ी समस्या पैदा हो गई. भगवान शिव को होश में लाने के लिए उन्होंने बहुत प्रयास किए.
इस स्थित में आदिशक्ति प्रकट हुई और उन्होंने देवताओं से जड़ी बूटियों और जल से शिव जी का उपचार करने को कहा. देवताओं ने भगवान शिव के शरीर से हालाहल की गर्मी को दूर करने के लिए उनके शरीर पर धतूरा और भांग रखा विष को शांत करने के लिए शंकर भगवान के माथे पर धतूरा और भांग रखकर उनका निरंतर जलाभिषेक किया. ऐसा करने से शिव जी के शरीर से विष निकल गया और भगवान होश में आ गए.
आयुर्वेद में भी धतूरे का इस्तेमाल औषधि के तौर पर किया जाता है. इसमें पुराने से पुराने बुखार, जोड़ों के दर्द और विष प्रभाव को हरने की अद्भुत क्षमता होती है.
ज्योतिष शास्त्र में धतूरे को राहु का कारक माना गया है, इसलिए भगवान शिव को धतूरा अर्पित करने से राहु से संबंधित दोष जैसे कालसर्प, पितृदोष दूर हो जाते हैं.तथा राहू के द्वारा परेशानी को दूर किया जा सकता है ।
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ज्योतिषाचार्य पंडित दिलीप देव द्विवेदी जी महाराज
विन्ध्य ज्योतिष केन्द्र
सम्पर्क सूत्र 82997 96472