सावन को मनभावन बनाने की निःशुक्ल सामग्री
- रुद्राभिषेक में दूध, दही, शहद से ज्यादा प्रभावी होगा सदाचरण का अभिषेक
आस्था, निष्ठा, विनम्रता एवं समर्पण आदि ऐसे भाव हैं कि इसके जरिए व्यक्ति हर जगह सम्मान ही नहीं परस्पर सानिध्य एवं भरपूर सहयोग भी प्राप्त कर लेता है।
इन्हीं सद्गुणों के बल पर पूजा पाठ तथा धार्मिक कार्यक्रमों में अपने ईष्टदेव तक की कृपा का भी द्वार खुलता है। इसीलिए धार्मिक कार्यक्रमों में अपने ईष्टदेव के प्रति पूर्ण विश्वास एवं समर्पण की सराहना की गई है।
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धर्म ग्रन्थों में अनेक दृष्टांत मिलते है कि बड़े-बड़े ऋषि- मुनि-तपस्वी तथा सम्राट ईश्वरीय कृपा नहीं प्राप्त कर सके जबकि अत्यंत दीन-हीन अवस्था में रहने वालों को ईश्वर की कृपा सहज एवं सरल ढंग से मिल गई।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम वनवास के दौरान बहुतेरे ऋषि-मुनि चाहते थे कि श्रीराम उनके आश्रम में अवश्य आएं। श्रीराम लोकहित के प्रति समर्पित भारद्वाज ऋषि तथा अत्रि ऋषि के आश्रम के साथ मतंग ऋषि के आश्रम में गए।
मतंग ऋषि के आश्रम में अत्यंत मन से भगवान श्रीराम की प्रतीक्षा में बेचैन सबरी को दर्शन ही नहीं दिया बल्कि उसका जूठा बेर तक खाकर आह्लादित हुए। गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या को शापमुक्त करने का भी काम उन्होंने किया।
महत्वपूर्ण बात यह है कि ईष्टदेव को कौन जुबान से और कौन अंतर्मन से याद करता है, उसी अनुसार ईष्टदेव पुकार सुनते हैं। द्वापर में मगरमच्छ से पीड़ित गजेंद्र की पुकार पर श्रीकृष्ण द्वारिकापुरी का सिंहासन छोड़ दौड़ पड़े थे। दुर्योधन के हाथों द्रौपदी की लुटती लाज को बचाने भी श्रीकृष्ण हाजिर हुए।
वस्तु नहीं मन के वास्तु-शास्त्र का महत्व :
इन सारे प्रसंगों में अंतर्मन की आवाज़ भगवान के पास पहुंचने का दृष्टांत विद्यमान है। भगवान वस्तु और पदार्थ को वरीयता नहीं देते। भगवान जिस मन में बसते हैं, वहां की आवाज आधुनिक भाषा में कहें तो ई-मेल की तरह सीधे भगवान तक पहुंचता है।
इसीलिए धर्मग्रन्थों में मानसिक पूजा का भी उल्लेख है जो तमाम विधि-विधानों से ज्यादा प्रभावी है। धन के रूप में कुछ न हो लेकिन मन के रूप में सुसम्पन्नता हो तो शायद धन के बल पर भगवान को रिझाने वाले पीछे रह जाएंगे, मन वाला कृपा प्राप्त कर लेगा।
धन के बल पर भगवान को रिझाने वाले यदि दूसरों का हिस्सा छीन कर पूजा-पाठ कर रहे हैं तो उसका फल उसे ही मिलेगा जिसका हिस्सा छीना गया है। क्योंकि ईष्टदेव को सब मालूम है कि उपासक कितने पानी में है। मानसिक पूजा के दौरान ईष्टदेव के विग्रह को स्नान के लिए मानसिक रुप से यह भाव मन में ले आना चाहिए कि पवित्र नदियों का जल लाया गया है।
पुष्प के लिए मानसिक ध्यान करे कि कैलाश पर्वत का पुष्प एकत्र किया जा रहा है। नैवेध के रूप में विशष्ट व्यंजन चढ़ाया जा रहा है। ध्यान का यह तरीक़ा सबरी, अहिल्या, दौपदी तथा गजेंद्र जैसा होना चाहिए।
ग्रहों के स्वभाव के अनुसार आचरण :
महादेव होंगे प्रसन्न : सावन के महीने में दीनों के नाथ भगवान शिव के रुद्राभिषेक के लिए यदि पास में धन का अभाव है तब भी मानसिक रुद्राभिषेक किया जा सकता है।
यह भारी भरकम द्रव्य और वस्तु से भी ज्यादा प्रभावी हो सकता है। रुद्राभिषेक में जिस प्रकार अलग-अलग ग्रहों को अनुकूल करने के लिए अलग-अलग पदार्थों यथा दूध, शहद, गन्ने के रस आदि से अभिषेक किया जाता है।
यदि इन वस्तुओं में खुद के पास कुछ न हो तो मानसिक अभिषेक के वक्त सूर्य की अनुकूलता के लिए यह संकल्प लिया जाए कि उपासक हर जगह प्रकाश उसी तरह फैलाएगा जिस तरह सूर्य के उदित होते अंधकार दूर हो जाता है।
यह प्रकाश बहुआयामी होना चाहिए। इसी तरह चन्द्रमा ग्रह के लिए हमेशा मन शीतल रखने का तथा मंगल ग्रह के लिए वचनों तथा आचरण में उग्रता की जगह विनम्रता का भाव रखने का संकल्प लेना चाहिए।
बुद्ध एवं गुरु ग्रह की अनुकूकता के लिए बौद्धिक ज्ञान वृद्धि तथा शुक्र ग्रह के लिए भौतिक धरातल पर अभावों में जीने वालों को भौतिक समृद्धि का रास्ता दिखाने का भाव मन में रखना चाहिए ।
इसके बाद शनि ग्रह की कृपा के लिए किसी का हक-हिस्सा न छीनने का संकल्प एवं राहु एवं केतु ग्रह को अनुकूल करने के लिए आलस्य त्याग तथा दूसरों के आगे हाथ न फैलाकर खुद पुरुषार्थी बनने का संकल्प लेना चाहिए।
● सलिल पांडेय, मिर्जापुर ।