पुत्र के दीर्घजीवन के लिए माताओं ने रखा ललही छठ व्रत
- पुत्र की प्राप्ति और उनकी लंबी आयु के लिए महिलाएं रखती हैं ललही छठ का व्रत
- मिर्जापुर में कई जगह समूह में महिलाओं ने पूजा कर सुनी कथा
जन्माष्टमी से पहले हर साल हलषष्ठी, हरछठ या ललही छठ का त्योहार मनाया जाता है। हर छठ भादों कृष्ण पक्ष की षष्ठी को मनाया जाता है। इसी दिन श्री कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। हमारे यहां इस त्योहार को ललही छठ के नाम से जानते हैं।
ललही छठ पूजन विधि
इस व्रत में महुआ के दातुन से दांत साफ किया जाता है। शाम के समय पूजा के लिये हरछ्ठ मिट्टी की बेदी बनाई जाती है। हरछठ में झरबेरी, कुश और पलास तीनों की एक-एक डालियां एक साथ बांधी जाती है।
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जमीन को मिट्टी से लीपकर वहां पर चौक बनाया जाता है। उसके बाद हरछ्ठ को वहीं पर लगा देते हैं। सबसे पहले कच्चे जनेउ का सूत हरछठ को पहनाते हैं। फल आदि का प्रसाद चढ़ाने के बाद कथा सुनी जाती है।
ललही छठ का व्रत रखने पर क्या खाए क्या न खाएं –
इस दिन बलराम जी का जन्मोत्सव मनाया जाता है इसलिए खेत में उगे हुए या जोत कर उगाए गए अनाजों और सब्जियों को नहीं खाया जाता।
क्योंकि हल बलराम जी का अस्त्र है। साथ ही गाय का दूध, दही, घी ये उससे बने किसी भी वस्तु को खाने की मनाही होती है। इसलिए महिलाएं इस दिन तालाब में उगे पसही/तिन्नी का चावल/पचहर के चावल खाकर व्रत रखती हैं। इस दिन महिलाएं भैंस का दूध ,घी व दही इस्तेमाल करती है।
ओम शंकर गिरी (पप्पू) की रिपोर्ट
” Today MZP News “