विंध्याचल की उपासना की स्थली है ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग
मिर्जापुर साहित्यिक एवं शोधपरक संस्थान डॉ0 भवदेव पाण्डेय शोध संस्थान के संयोजक सलिल पाण्डेय ने पौराणिक ग्रथों के आधार पर बताया कि विंध्याचल पर्वत भगवान शंकर का परम भक्त था और ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग की स्थापना विंध्याचल पर्वत ने की थी ।
उन्होंने कहा कि सावन महीने में ज्योतिर्लिंगों के दर्शन-पूजन के लिए तो श्रद्धालु नर-नारी ही नहीं उमड़ते बल्कि ऋषि, मुनि, सन्त- महात्माओं के अतिरिक्त देव-मण्डल भी उमड़ पता है ।
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पौराणिक आख्यानों के अनुसार पवित्र क्षेत्र विंध्याचल के शक्तिमान होने के पीछे महादेव की आराधना ही है और विंध्याचल पर प्रसन्न होकर देवाधिदेव महादेव में उसको सर्वश्रेष्ठ होने का वरदान दिया था ।
विंध्याचल द्वारा स्थापित शिवलिंग भी द्वादश ज्योतिर्लिंगों में शामिल है । विंध्याचल परिक्षेत्र महादेव की अनुकम्पा से आज भी ऐश्वर्ययुक्त है ।
सावन के तीसरे सोमवार को संस्थान कार्यालय में ‘शिव महिमा और विंध्यक्षेत्र’ विषय पर गोष्ठी में श्री पाण्डेय ने कहा कि शिवपुराण के कोटि रूद्र संहिता के अध्याय 18 के अनुसार ऋषि नारद मर्त्यलोक में भ्रमण करते जब इस पर्वत पर आए तो विंध्यपर्वत यद्यपि नारद के सम्मान में सेवा के लिए दौड़ पड़ा लेकिन उसकी बातों में नारद को अहंकार दिखाई पड़ा ।
विंध्यपर्वत ने कहा था- हे मुनिश्रेष्ठ, मेरे यहां रहिए । यहां सब कुछ है । किसी चीज की कमी नहीं है । नारद को बातों में अभिमान लगा । वे बोले- तुम्हारे पास सब कुछ है लेकिन देवमंडल में सुमेरु पर्वत का महत्त्व ज्यादा है ।
इससे दुःखी होकर विंध्याचल ने नर्मदा नदी (मध्यप्रदेश के खंडवा, इंदौर) के तट पर पार्थिवशिवलिंग की स्थापना की । यद्यपि एक ही ज्योतिर्लिंग है लेकिन जो मन्त्र पढ़े गए वह ओंकारेश्वर एवं पार्थिव शिव को अमलेश्वर की मान्यता महादेव ने दी । इस प्रकार विंध्याचल पर्वत इतना श्रेष्ठ हुआ कि सूर्य का मार्ग भी अवरुद्ध करने में सफल हुआ था ।
गोष्ठी में शिव के प्रति लोकमानस की आस्था के पीछे वक्ताओं में अंश शर्मा, निधि गुप्ता, आरती साहू, कुणाल वर्मा, आदित्य सैनी वैष्णवी, कार्तिक कसेरा, विष्णु बर्मा आदि ने कहा कि महादेव बहुत जल्द प्रसन्न होते हैं और जब अन्य देवता कुपित हों तो महादेव ही रक्षा करते हैं । गोष्ठी का सञ्चालन सावित्री पांडेय ने किया।
● सलिल पांडेय, मिर्जापुर ।

