सँविधान के लिए ‘हत्या’ शब्द का प्रयोग उचित नहीं
मिर्जापुर। भारत सरकार द्वारा 25 जून 1975 को इमरजेंसी लागू करने के संबन्ध में इस दिवस को सँविधान-हत्या दिवस लागू करने की घोषणा की गई है। इसमें
‘संविधान हत्या दिवस’ से यह प्रकट होता है कि संविधान मृत हो गया है क्योंकि हत्या का अर्थ मृत्यु से ही लिया जाता है। चूंकि इस दिन के बाद जिस संविधान की हत्या का उल्लेख है, उसी सँविधान के तहत अब तक सारे काम-काज होते रहे तथा संवैधानिक संस्थाओं का अस्तित्व भी बना रहा।
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इसलिए ‘हत्या’ शब्द का प्रयोग उचित नहीं प्रतीत हो रहा है। ‘सँविधान हत्या’ शब्दों के प्रयोग से सँविधान सभा के अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद एवं प्रारूपकार समिति के अध्यक्ष डॉ भीमराव अंबेडकर सहित सँविधान निर्माण करने वाले महापुरुषों के सम्मान पर आंच तो आएगी ही और यह धारणा बन जाएगी कि भारतीय संविधान इतना प्रभावी नहीं था और उसकी हत्या भी हो गई।
भारत की गरिमा के प्रतीक सँविधान के लिए ‘हत्या’ शब्द का उचित नहीं है। ऐसी स्थिति में ‘सँविधान हत्या दिवस’ से ‘हत्या’ शब्द हटाया जाना न्याय संगत होगा। ऐसी गांव गरीब नेटवर्क ने की है।
● सलिल पांडेय, मिर्जापुर ।