तीसरी आंख : ये कहाँ आ गए लोग, समय बदलते- बदलते?
- ◆दो घटनाएं-सभ्य समाज के गाल पर है गहरे तमाचे ?
- ◆अंतिम द्वार पर भी जब मिली हार तो महिला ने CM के चौखट पर कर लिया अग्नि का शृंगार!
- ◆फतेहपुर में डीएम पद को महिला-पुरुष में विभाजित करते हुए कहा गया, ‘महिला को धक्का देते हो?
- ◆संवैधानिक पदों पर बैठे लोग महिला-पुरूष नहीं माने जाते।
- ◆महिला होने की दुहाई का मतलब खुद को कमजोर मानना।
◆रुतबा तब बढ़ता जब सत्ता पक्ष के किसी जनप्रतिनिधि या मंत्री को गलत काम के लिए कड़ाई से जवाब दिया जाए।
◆लेकिन होता है उल्टा, मजबूत को देखकर विनम्र हो जाना और कमजोर पर रंग गाँठना, यह हो गया है आज का दस्तूर
- Advertisement -
◆वरना 1982-83 में मिर्जापुर के जिलाधिकारी पीके मिश्र ने सत्ता पक्ष के विधायक से कहा, ‘आप सीमेंट ब्लैक करते हैं, परमिट नहीं दूंगा।
◆ट्रैक्टर भर कर अनाज लेकर गए जमींदार से भी डीएम ने कहा, ‘क्यों हर डीएम को अनाज देते हैं, कोई गलत काम आप जरूर करते हैं?
मिर्जापुर। सावन महीने में देवों के देव इसीलिए कैलाश पर्वत से नीचे उतरते हैं कि बड़ा व्यक्ति नीचे के लोगों का भी अता-पता करे कि उनकी जिंदगी कैसी चल रही है, लेकिन इसी सावन में मुख्य मंत्री के चौखट के बाहर खुशहाली के शृंगार से मरहूम एक जाटव जाति की महिला को खुद को आग से शृंगार करना पड़ा।
जिस आवास में हर समस्याओं के इलाज़ का दावा किया जाता है, वहां भी उसकी वेदना के दस्तावेजों को संभवतः पढ़ा नहीं गया और बाहर निकल कर उसने आत्मदाह का ‘भीष्म पितामह जैसी इच्छा मृत्यु’ का वरण कर लिया।
मीडिया रिपोर्टों में किसी पुलिस वाले ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, ‘महिला सपा कार्यालय की ओर से आई थी।’ इस बात पर सवाल यह किया जा रहा कि क्या सपा कार्यालय अछूत पार्टी है? यदि उधर से ही आई तो दूधमुँहे बच्चे को छोड़कर आग लगा लेना संवैधानिक मान लिया जाएगा?
◆फतेहपुर की डीएम का सामान्य आदमी को थप्पड़!
इंटरनेट पर वायरल वीडियो में फरियादी को थप्पड़ मारने के प्रकरण की जांच होनी चाहिए। वीडियो सही है तो डीएम का यह कदम सँविधान द्वारा हरेक को सम्मानपूर्वक जीने के वचन पर थप्पड़ मारना समझना चाहिए।
◆क्या हो गया है संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को, जो मजबूत व्यक्ति को देखकर कांपने लगते हैं और असहाय को अपमानित करने लगते हैं।
अकारण किसी असहाय को अपमानित करने या थप्पड़ मारने वालों को समझना चाहिए कि यह उस व्यक्ति पर थप्पड़ नहीं है बल्कि दैवी-शक्तियों पर थप्पड़ है, जिसका आध्यात्मिक दंड भी मिलता है।
एक बात यह स्पष्ट होनी चाहिए कि डीएम, एसपी,विधायक, मंत्री, मुख्यमन्त्री, प्रधानमंत्री जैसे पदों पर बैठा स्त्री-पुरुष नहीं होता। वह पद पर बैठा है तो भीड़-भाड़ में धक्के लगना कोई बड़ी बात नहीं है। डीएम जैसे पदों पर बैठे अधिकारी के आगे पीछे गनर तथा हुजूम चलता है। ऐसी स्थिति में डीएम को धक्का देने की स्थिति में जानबूझ कर होना संभव नहीं होता है।
समय बदल गया है वरना मिर्जापुर में ही डीएम रहे पीके मिश्र ने सत्ता पक्ष के एक विधायक को सीमेंट का परमिट देने से इनकार कर दिया था। उन दिनों 40/- बोरी का सीमेंट ब्लैक में 80/-में मिलता था।
विधायक की शिकायत हुई कि वे परमिट का सीमेंट ब्लैक करते हैं। डीएम के इनकार के प्रकरण के वक्त इन पंक्तियों का लेखक वहां मौजूद था। इसी तरह एक जमींदार का भारी मात्रा में अनाज आदि डीएम ने लौटा दिया था। उल्लेखनीय है कि पीके मिश्र ने ही ‘विंन्ध्य विकास परिषद’ गठित कर विध्याचल मेले की व्यवस्था सुधार दी थी।
उक्त दोनों प्रकरणों की गहराई से जांच कर उचित विधिक कार्रवाई की जानी चाहिए।
● सलिल पांडेय, मिर्जापुर ।