31 जुलाई : प्रेमचन्द जयंती
- ◆चुनार किले में सन्चालित स्कूल ने मुंशी प्रेमचंद को रिफॉर्म कर दिया
- ◆ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ़ बगावत की लेखनी यही से धारदार हुई
मिर्जापुर। नगर की साहित्यिक संस्था डॉ भवदेव पांडेय शोध संस्थान के संयोजक सलिल पांडेय ने कहा कि जिंदगी में कुछ लम्हे ऐसे भी आते हैं, जिसकी वजह से कुछ लोगों के नाम इतिहास के पन्नों पर उन अक्षरों में अंकित होकर चमकने लगते हैं कि कालचक्र उनकी चमक को बढ़ाता ही जाता है।
उन्होंने कहा कि इतिहास के इन्हीं चमकते हुए पन्नों में हिंदी साहित्य के कथा एवं उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द का नाम भी आता है। प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के लमही गांव में हुआ था, लेकिन आजीविका के लिए उनका आरंभिक कार्यक्षेत्र पड़ोसी जनपद मिर्जापुर चुनार क्षेत्र बना, जहाँ राजा विक्रमादित्य के भाई भर्तृहरि की समाधि स्थल क्षेत्र में संचालित रिफार्मेटरी स्कूल (मिशन स्कूल) में अत्यंत अल्पकाल के शिक्षण कार्य के दौरान उनके मन को यहां घटित घटनाओं ने पूरी तरह रिफार्म कर दिया और उनके मन के कोने में मिशन भाव जागृत कर दिया।
- Advertisement -
वर्ष 1880 में जन्मे प्रेमचंद जिनका वास्तविक नाम धनपतराय श्रीवास्तव था, को गरीबी से ही नहीं, बल्कि छोटी अवस्था में पिता की मृत्यु की वेदना तथा किशोरावस्था में विवाह एवं सौतेली माॅं से उनकी पत्नी के कलह और कटुता की दारुण परिस्थितियों से रूबरू होना पड़ा और जिसके परिणामस्वरूप पहले से ही अ-धनपत अकिंचन, अब और अधिक ‘अ-धनपत राय’ बनते जाने की नियति ओर बढ़ने के लिए विवश तो हुए, लेकिन मन के जज्बे को उन्होंने कम भी नहीं होने दिया।
आर्थिक परिस्थितियों से दो-चार हाथ करने के लिए वे चुनार के इस स्कूल में आजादी के आंदोलन के दौरान गिरफ्तार किए गए कैदियों के बच्चों को पढ़ाने के लिए आए तो जरूर, लेकिन उन्हीं परिस्थितियों में ब्रिटिश हुकूमत के सिपहसालारों और उनकी ज्यादतियों से भी लोहा लेने की राष्ट्रीय भावना के जज़्बे का भी उनमें सामयिक प्रादुर्भाव हुआ, जो बाद में उनकी शुरुआती कहानियों का सर्जनात्मक आधार बना।
एक दिन स्कूल में खेल प्रतियोगिता के दौरान पराजित होने के बाद भी ब्रिटिशर्स, हिंदुस्तानी खिलाड़ियों का ‘हिप-हिप हुर्रे’ कहकर हूटिंग कर रहे थे और उनकी पिटाई कर रहे थे। उसी वक्त हिंदुस्तानियों के दल ने ब्रिटिश खिलाड़ियों की जबरदस्त पिटाई कर दी।
इस दल में महत्वपूर्ण भूमिका प्रेमचन्द की भी रही। ब्रिटिशर्स के खिलाफ़ बगावत की चिंगारी में प्रेमचंद की 20 रुपए की नौकरी खाक हो गई।
यहाॅं इस घटनाक्रम से प्रेमचन्द के किशोर मन पर ऐसा जबरदस्त असर पड़ा, जो दिनोंदिन बढ़ता गया और तकरीबन दो साल बाद ही बेसिक शिक्षा में अध्यापक की नौकरी के पाने पर भी कहानियों के माध्यम से उनकी लेखनी बगावत की लौ जलाने लगी। देशप्रेम की भावना को बगावत का पारावार बनाने के लिए उन्होंने अपना नाम नवाबराय रख लिया।
प्रथम कहानी संग्रह ‘सोजे-वतन’ के छपते ब्रिटिश हुकूमत में खलबली मच गई। अंततः हुकूमत को नवाबराय का पता चल गया कि उनका शिक्षक ही इस कहानी संग्रह का लेखक है।
उनके महोबा स्थित आवास पर छापा पड़ा तथा लगभग पाॅंच सौ पुस्तकें हुकूमत द्वारा जला दी गईं। इसके बाद वे प्रेमचन्द नाम से सामाजिक-आर्थिक विसंगतियों, कुरीतियों, किसानों के शोषण, नारी जीवन की विडंबनाओं आदि का, गांधीवादी दर्शन से प्रेरित आदर्शोन्मुख यथार्थवाद को अपनी कहानी का आधार बनाया तथा 1920 के बाद गांधी के नेतृत्व में आजादी के आंदोलन में 1936 में मृत्यु तक अपनी लेखकीय भूमिका निभाते रहे।
● सलिल पांडेय, मिर्जापुर ।