हाथरस हादसा : आकस्मिक भगदड़ या षडयन्त्र ?
हाथरस हादसे में व्यापक नरसंहार को लेकर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने त्वरित कदम उठाकर एवं न्यायिक जांच की घोषणा कर इस बात का संकेत दिया कि जांच में इन पहलुओं पर भी सम्यक् विचार किया जाएगा कि यह हादसा आकस्मिक भगदड़ से हुआ या इसके पीछे साजिश है?
इन दोनों पहलुओं पर विचार आवश्यक इसलिए भी है क्योंकि इतने बड़े हादसे के पीछे कुछ भी हो सकता है। प्रथमतः ग्रामीण लोग इसमें ज्यादा थे। उसमें भी महिलाओं की संख्या अधिक थी।
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ऐसे दौर में जब पढ़े-लिखे और जागरूक तथा बड़े-बड़े ओहदे पर बैठे लोग प्रायः ईश्वरीय चमत्कार के पीछे भागते देखे जाते हैं। अपने स्टेटस का ख्याल न कर धर्मस्थलों पर भीड़ जुटाने वाले तथाकथित धर्म के ठीकेदारों के आगे शीश झुकाते हैं और इन ठीकेदारों को महिमामण्डित करते हैं तो ग्रामीण महिलाएं यदि ऐसे स्वयंभू अवतारों के आगे झुक रही हैं तो सिर्फ इन्हें ही कोसना ठीक नहीं है।
होना तो यह चाहिए कि जहां धर्म की आड़ में चमत्कार की बातें सामने आने लगे तो ऐसे चमत्कारी धर्मगुरुओं की गतिविधियों पर ख़ुफ़िया नज़र रखनी चाहिए। पलक झपकते बड़े-बड़े महल टाइप धर्मस्थलों की आमदनी का लेखाजोखा भी लिया जाना चाहिए।
धर्म की आड़ में धर्माधिकारी यदि अनुचित हरकत कर रहा है और इसमें शासन-प्रशासन से जुड़े लोग मदद कर रहे हैं तो ऐसे लोगों को भी कटघरे में रखना चाहिए। क्योंकि दिन दूनी रात चौगुनी उपलब्धियों के पीछे गलत कार्यों की संभावना बनी रहती है।
जहां तक हाथरस हादसा में षडयंत्र की आशंका की बात है तो इससे इनकार नहीं किया जा सकता है। क्योंकि यह घटना ऐसे वक्त पर हुई है जब पर्वों, उत्सवों का दौर शुरु होने वाला है।
आषाढ़ महीने की पूर्णिमा 21 जुलाई को अनेकानेक मंदिरों, आश्रमों तथा मठों में गुरु-पूर्णिमा उत्सवों का आयोजन होता है। इस घटना से ऐसे आयोजनों पर कड़ाई की सँभावना बढ़ जाएगी ही। प्रशासनिक अनुमति के लिए कड़े प्राविधान किए जाने लग सकते हैं।
परंपरागत तरीके से होने वाले आयोजनों पर कड़ाई से उत्तर प्रदेश सरकार की छवि पर आंच आ सकती है। एक तो खुद मुख्यमंत्री प्रमुख धर्मस्थल गुरु गोरखनाथ पीठ के अधिष्ठाता हैं और उनके कार्यकाल में गुरु-पूर्णिमा पर कड़ाई से सरकार की छवि पर आंच न आए, संभव नहीं है।
इसके अलावा सावन माह में मंदिरों में आयोजन बढ़ जाते हैं। इसके बाद हर आने वाले महीने तक उत्सवों का सिलसिला बना रहता है जो दीपावली तक रहता है। स्वाभाविक रूप से अब इन उत्सवों में शामिल होने वालों का डिटेल मांगा जा सकता है।
इस तरह आयोजनों के लिए नए तौर-तरीके तथा पत्रावलियों को लेकर सरकारी तंत्र एवं आयोजकों में मतभेद हो सकते हैं। लोकसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री के विरुद्ध अनेकानेक स्तरों से हमले हो रहे हैं।
उन्हें अपदस्थ करने की कोशिशों की ख़बर आती रहती है। जबकि सामान्य जनता की नजर में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सख़्त प्रशासक माने जाते हैं। अतः जांच के दायरे में व्यापक दृष्टिकोण अपनाना लोकहित में होगा।
सलिल पांडेय, मिर्जापुर