कछवां। जैन समाज ने मनाया महाबीर स्वामी का निर्वाणोत्सव
कछवां। क्षेत्र के मझवां गांव में स्थित श्री 1008 पार्श्वनाथ दिगंबर जैन मंदिर में महावीर स्वामी का निर्वाणोत्सव बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। जिसमें आनन्द जैन ने बताया कि जैन ग्रन्थों के अनुसार समय-समय पर धर्म तीर्थ के प्रवर्तन के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है, जो सभी जीवों को आत्मिक सुख प्राप्ति का उपाय बताते है। तीर्थंकरों की संख्या चौबीस ही कही गयी है। भगवान महावीर वर्तमान अवसर्पिणी काल की चौबीसी के अंतिम तीर्थंकर थे।
हिंसा, पशुबलि, जात-पात का भेद-भाव जिस युग में बढ़ गया, उसी युग में भगवान महावीर का जन्म हुआ। उन्होंने दुनिया को सत्य व अहिंसा का पाठ पढ़ाया। तीर्थंकर महावीर स्वामी ने अहिंसा को सबसे उच्चतम नैतिक गुण बताया। उन्होंने दुनिया को जैन धर्म के पंचशील सिद्धांत बताए, जोकि अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य (अस्तेय), ब्रह्मचर्य है। उन्होंने अनेकांतवाद, स्यादवाद और अपरिग्रह जैसे अद्भुत महाव्रती सिद्धान्त दिए।
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महावीर के सर्वोदयी तीर्थों में क्षेत्र, काल, समय या जाति की सीमाएँ नहीं थीं। भगवान महावीर का आत्म धर्म जगत की प्रत्येक आत्मा के लिए समान था। दुनिया की सभी आत्मा एक-सी हैं इसलिए हम दूसरों के प्रति वही विचार एवं व्यवहार रखें जो हमें स्वयं को पसन्द हो। यही महावीर का ‘जियो और जीने दो’ का सिद्धान्त है। इस दौरान समाज के पारसनाथ जैन, अरविंद, विरेंद्र, सुशील, संतोष, आकाश, शिवम, विरेन्द्र, नैना, परी, कुसुम, मंजु जैन आदि उपस्थित रहें।
कछवां से शिवम मोदनवाल की रिपोर्ट
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