पितृपक्ष में शास्त्रीय विधानों के साथ आचरण की शुद्धता भी जरूरी
- ◆छल-छद्म में लगे संतानों को देखकर पितरों को होती है पीड़ा
- ◆विन्ध्य संत मण्डल द्वारा पितृपक्ष की महत्ता पर संगोष्ठी
मिर्जापुर। ‘पितृ-पक्ष की महत्ता’ से अवगत कराने के लिए विन्ध्य संत मण्डल द्वारा एक संगोष्ठी की गई जिसमें उपस्थित श्रद्धालुओं को अवगत कराया गया कि वे हर स्थिति में सोलह दिनों के इस पर्व पर दिवंगत पितृ देवताओं के निमित्त शास्त्रों द्वारा निर्देशित कर्म अवश्य करें। यदि कोई पूर्णतया साधन विहीन हो तो भी भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पितृ देवताओं को दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके श्रद्धापूर्वक अपनी विवशता बताते हुए जल से अर्घ्य दें।
नगर के गैबीघाट स्थित श्री बाल हनुमान मंदिर पर बुधवार को आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता मण्डल के अध्यक्ष भरत गिरि महाराज ने की जबकि मुख्य वक्ता के रूप में बरकछा आश्रम के सन्त धर्मराज महाराज ने कहा कि पितरों के सम्मान में किसी विद्वान को भोजन, दान के साथ गाय, कौआ, चींटी एवं कुत्ते आदि को भी अग्रासन देना चाहिए। ये जीव पर्यावरण संरक्षण में भूमिका अदा करते हैं।
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इस अवसर पर गैबीघाट के महात्मा ने कहा कि लोग प्रश्न करते हैं कि पशु-पक्षियों को कुछ खिलाने से क्या पितरों को अंश प्राप्त होता है? इसका उत्तर यही है कि जैसे विदेशों में प्राप्त डॉलर-दीनार भारत में आते-आते रुपए में बदल जाता है, उसी तरह अग्रासन भी पितरों तक पहुंच जाता है। इसी क्रम में कचहरी बाबा आश्रम के संत श्रीकांत महाराज ने कहा कि पितरों का ऋण चुकाए बिना मुक्ति नहीं मिलती । अन्य वक्ताओं में छीतपुर आश्रम के पंचू महाराज, जालपा देवी आश्रम के दिव्यानन्द महाराज, विजय नारायण दास, मण्डल के कोतवाल तेजबली दास, पुरोहित श्याम सुंदर शुक्ल आदि ने पितृ पक्ष के सरलतम उपायों पर प्रकाश डाला तथा इस अवधि में आचरण की शुद्धता पर अपनाने की सलाह दी गई, क्योंकि छल-छद्म में लगे संतानों को देखकर पितरों को कष्ट मिलता है। संगोष्ठी का संचालन सलिल पांडेय ने किया।
◆सलिल पाण्डेय, मिर्जापुर।