शानदार और सिद्धान्तदार पीएम रहे अटल जी की यादों चंद सालों में शायद चंद्रयान से चन्द्रमा पर भेज दिया गया?
◆नगर में अटल जी याद रहे तो सिर्फ नगर विधायक के ही दिल की धड़कनों में
◆जबकि थोक भाव में हैं जिले में जनप्रतिनिधि
◆प्रभारी मंत्री का भी काफिला ‘हम तुम्हें भुला बैठे’ की गूंज के साथ गुजर गया
◆नीरज का गीत-अंश ‘कारवां गुज़र गया, ग़ुबार देखते रहे’ गाते लोग दिखे
◆चुनावी मौका होता तो ‘तेरे बिन क्या जीना’ के पूरे गीत की गूंज होती आबोहवा में
मिर्जापुर। केंद्र सहित अनेक प्रदेशों में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की दमदारी जिले में यह दिखी कि पार्टी के लोग सिर्फ़ देश में ही नहीं विदेशों तक में हाज़िर- जवाबी की दृष्टि से सुपर माने जाने वाले एवं शून्य से उठाकर शिखर तक ले जाकर पहली बार पार्टी के प्रधानमंत्री पद को सुशोभित करने वाले अपने ही दिवंगत नेता अटल बिहारी बाजपेयी की ओर से आंखें फेर लीं, लिहाजा उनकी 6ठवीं पुण्यतिथि पर न श्रद्धांजलि बैठक और न ही पुष्पार्चन आदि का कार्यक्रम हो सका।
- Advertisement -
जबकि वर्ष 2018 में निधन के वक्त उनके अस्थि-विसर्जन एवं लोटे में अस्थियात्रा के समय नगर के नारघाट स्थित गङ्गा-तट पर नाव पर सवार होने के लिए ऐसी धमाचौकड़ी मची थी कि लोगबाग एक दूसरे के कंधे, पीठ और सिर पर सवार होते देखे गए थे।
◆सिर्फ नगर विधायक को ही याद थी दिवंगत नेता की पुण्यतिथि- विंध्याचल के अमरावती चौराहे पर अटल जी की भव्य प्रतिमा लगी है।
- इसे स्थापित कराने की सर्वप्रथम आवाज नगर विधायक रत्नाकर मिश्र ने ही उठाई थी।
इसके बाद यहां भव्य प्रतिमा निजी स्रोतों की आय से लगाई गई। प्रतिमा स्थापना के वक्त तो बड़ा जलसा हुआ था लेकिन चंद सालों में अटल जी की यादें, उनके देशसेवा का योगदान संभवतः चन्द्रयान से चन्द्रमा पर शायद चला गया लिहाज़ा जिले के पांचों विधानसभा में भाजपा और उससे ऑक्सीजन प्राप्त दलों के विधायक, भाजपा के ग्लैमर के चलते अन्य दलों को पीठ दिखाकर शामिल हुए जन प्रतिनिधि, पार्टी के पदाधिकारी बनने के लिए दिल्ली-लखनऊ तक गणेश-परिक्रमा करने वाले, कमल का बैज लगाकर रंग गांठते नेता मौजूद हैं लेकिन दिवंगत नेता अटल जी के प्रति सम्मान व्यक्त करने का भाव शायद किसी के दिल के कोने में नहीं जाग सका।
◆टा-टा, बाय-बाय स्टाईल में गुजर गया मंत्री का काफिला : संयोग से जिले में शुक्रवार, 16 अगस्त को प्रदेश सरकार के एक मंत्री का भी आगमन हुआ।
कुछ ही फर्लांग की दूरी पर स्थित अष्टभुजा डांक बंगले में वे मंत्री वाले तामझाम के साथ आए भी। उसी रास्ते कलेक्ट्रेट भी गए लेकिन उनके भी जेहन में शायद अटल जी नहीं थे। ऐसी स्थिति में अटल जी की प्रतिमा पर डीजल का धुआं और सड़क की माटी, देश की माटी से मोहब्बत करने वाले अटल जी पर छोड़ते उनका काफिला आगे बढ़ गया और फिर उसी रास्ते लौट कर डांक बंगले वापस भी आया।
◆अटल जी से लगाव रखने पुराने भाजपाइयों को याद आया ‘कारवाँ गुजर गया ग़ुबार देखते रहे’- पार्टी के पुराने नेताओं को फ़िल्म जगत के लिए गीत-गजल लिखकर अमर हुए कवि नीरज के गीत की इस पंक्ति को दुहराते देखा गया। मानना यह था कि आसपास चुनाव का मौका होता तो अटल जी के लिए ‘तेरे बिन क्या जीना’ वाला पूरा गीत पार्टी और इधर-इधर से भटक कर आपदा में अवसर तलाशने वाले गाते होते और ग्लिसरीन वाला फिल्मी आंसू बहाते होते।
● सलिल पांडेय, मिर्जापुर ।