श्रावण मास के संकटहरण व्रत की महत्ता।
स्कन्दपुराण के अनुसार श्रावण मास में कृष्णपक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन सभी वांछित फल प्रदान करने वाला संकष्टहरण नामक व्रत करना चाहिये।
चतुर्थी के दिन प्रातः उठकर दन्तधावन करके इस संकष्टहरण नामक शुभ व्रत को करने के लिये यह संकल्प ग्रहण करना चाहिये- हे देवेश! आज मैं चन्द्रमा के उदय होने तक निराहार रहूँगा और रात्रि में आपकी पूजा करके भोजन करूँगा, संकट से मेरा उद्धार कीजिये।
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इस प्रकार संकल्प करके शुभ काले तिलों से युक्त जल से स्नान करके समस्त आह्निक कृत्य सम्पन्न करने के अनन्तर गणपति की पूजा करनी चाहिये। बुद्धिमान् को चाहिये कि तीन माशे अथवा उसके आधे (डेढ़ माशे) परिमाण अथवा तृतीय अंश (एक माशे) सुवर्ण से अथवा अपनी शक्तिके अनुसार सुवर्ण की प्रतिमा बनाये।
सुवर्ण के अभाव में चाँदी अथवा ताँबे की ही प्रतिमा सुखपूर्वक बनाये। यदि निर्धन हो तो वह मिट्टी की ही शुभ प्रतिमा बना ले। किंतु इसमें वित्तशाठ्य यानी कंजूसी न करे; क्योंकि वित्तशाठ्य करने पर कार्यनष्ट हो जाता है। रम्य अष्टदल कमल पर जल से पूर्ण तथा वस्त्रयुक्त कलश स्थापित करे और उसके ऊपर पूर्णपात्र रखकर उसमें वैदिक तथा तान्त्रिक मन्त्रों द्वारा सोलहों उपचारों से देवता की पूजा करे।
तिलयुक्त दस उत्तम मोदक बनाये, उनमें से पाँच मोदक देवता के समक्ष निवेदित करे और पाँच मोदक ब्राह्मण को प्रदान करे। भक्तिभाव से उस विप्र की देवता की भाँति पूजा करे और यथाशक्ति दक्षिणा देकर यह प्रार्थना करे- हे विप्रवर्य! आपको नमस्कार है। हे देव। मैं आपको फल तथा दक्षिणा से युक्त पाँच मोदक प्रदान करता हूँ।
हे द्विजश्रेष्ठ ! मेरी विपत्ति को दूर करने के लिये इसे ग्रहण कीजिये। हे विप्ररूप गणेश्वर! मेरे द्वारा जो भी न्यून, अधिक अथवा द्रव्यहीन कृत्य किया गया हो, वह सब पूर्णता को प्राप्त हो।
इसके बाद स्वादिष्ट अन्न से ब्राह्मणों को प्रसन्नतापूर्वक भोजन कराये। तत्पश्चात् चन्द्रमा को अर्घ्य प्रदान करे, उसका मन्त्र प्रारम्भ से सुनिये – हे क्षीरसागर से प्रादुर्भूत! हे सुधारूप ! हे निशाकर। हे गणेश को प्रीति को बढ़ानेवाले। मेरे द्वारा दिये गये अर्घ्य को ग्रहण कीजिये।
इस विधान के करने पर गणेश्वर प्रसन्न होते हैं और वांछित फल प्रदान करते हैं, अतः इस व्रत को अवश्य करना चाहिये। इस व्रत का अनुष्ठान करने से विद्यार्थी विद्या प्राप्त करता है, धन चाहने वाला धन पा जाता है, पुत्र की अभिलाषा रखनेवाला पुत्र प्राप्त करता है, मोक्ष चाहनेवाला उत्तम गति प्राप्त करता है, कार्यकी सिद्धि चाहनेवाले का कार्य सिद्ध हो जाता है और रोगी रोग से मुक्त हो जाता है।
विपत्तियों में पड़े हुए, व्याकुल चित्तवाले, चिन्ता से ग्रस्त मनवाले तथा जिन्हें अपने सुहृज्जनों का वियोग हो गया हो, उन मनुष्यों का दुःख दूर हो जाता है। यह व्रत मनुष्यों के सभी कष्टों का निवारण करनेवाला, उन्हें सभी अभीष्ट फल प्रदान करनेवाला, पुत्र-पौत्र आदि देनेवाला तथा सभी प्रकारकी सम्पत्तिकी प्राप्ति करानेवाला होता है।
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आचार्य डॉ0 धीरेन्द्र मनीषी। निदेशक: काशिका ज्योतिष अनुसंधान केन्द्र,
पड़ाव, वाराणसी। प्राध्यापक: हरिश्चंद्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय।
मो0: 9450209581/ 8840966024.